Peru

Peru is hot

Jan 17, 2023 - 03:26
Jan 18, 2023 - 02:47
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Peru

देखो तो कि —पेरु जैसे छोटे देश में मचे कोहराम से शेष दुनियां के उपर कोई असर ही नहीं पड़ रहा। इन लोगों ने केसिलो के समर्थन में सारे देश में कोहराम मचा रखा है। जबकि कांग्रेस में राष्ट्रवादियों का बोलबाला है और वे जो कर पा रहे हैं वह भी संवैधानिक ही है। १९९३ के संवैधानिक कानूनों के अनुसार सत्ता में बैठे राष्ट्रपति के उपर सहजता से महाभियोग चलाया जा सकता है। मुझे यही सारी समस्या का जड़ लगता है। ये भला क्या बात हुई कि राष्ट्रपति बनने से पहले और बनने के बाद भी आपकी स्थिति देश सेवा के लिए अक्षुण न हो। बात-बात पर आपके विरोधी आपकी बाट लगाते रहें, आपको काम न करने दें और आपसे उम्मीद भी करें कि आपसे तब सख्ती या गलती भी न हो। केसिलो की गलती ही थी उसने अपने उपर तीसरी बार चले महाभियोग में हार के तत्काल बाद कांग्रेस को भंग करने की सिफारिश कर दी थी। उसे चाहिए था कि वह शांति से पद त्याग देता और उपराष्ट्रपति डीना को पद सौंप देता। पर, यही काम उसने अपनी फजीहत करवा कर की। उसे सख्त पहरे में भला क्यों रखा गया है? क्या राष्ट्रवादियों को सचमुच यह डर सता रहा है कि कहीं वह फिर सत्ता पर काबिज न हो जाए। पर, कैसे? यह तो विचित्र स्थिति है। हास्यास्पद भी है और दुखद भी। एक अदद शिक्षक, शिक्षा बजट को बढ़ाने की जिद कर राष्ट्रपति बन जाता है और तब आप उसकी हर प्रकार से प्रताड़ना करते हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि उसके उपर लगे आरोप सही होंगे। सब स्ता का खेल लगता है मुझे। सीआईए के लोग भी सक्रिय पाए गए हैं। तो महाशय वहां भी सक्रिय होंगे ही। कहीं उसी के डर से पेरु के सारे पड़ोसी देश मिलकर इस घटना की निंदा करते नहीं थक रहे पर, उपाय कोई नहीं बता पा रहा। तब आखिर माजरा क्या है? कब आओगे यारा। मुझे रुचि तो नहीं थी पर, खुफिया रिपोर्टिंग की बात ने मुझे मानो सोए से जगा डाला है। कितना प्रशांत प्रदेश है वह अब वहां भी धूम-धमाका करवाना था इस प्रेत को। कहता है कि वह संसार का सुंदरतम प्राकृतिक विनियमन करता है। —तो करो न अब। छुपे क्यों हो दब्बू। 

“दब्बू? मैं, और दब्बू? जरा संभल कर बरखुद्दार! मैं इस प्रकृति में बला की ताकत हूँ। मैं अपने में अतीत को समेटे प्राकृतिक ताकतों का प्रतिनिधि हूँ, —महाप्रेत हूँ मैं। प्रकृति मेरा सम्मान करती रही है। —तुम मुझसे बच निकले तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम जो चाहो मन ही मन बुदबुदाते रहो और उसे समझ कर भी नकारता रहूं।”

‘जी न स्पीरिट, ऐसी बात नहीं है। मैं तो कहता आया था कि तुम, तुम हो और मैं, मैं हूँ। मैं दैव सेवा में हूँ और तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। सो, ऐसे आरोप न मढ़ा करो मुझ पर। मैं मानव हूँ, तुम्हारी तरह अमानव नहीं। मुझे दुख होता है।’ 

“सही है। पर, मुझे नहीं मालूम कि दुख होता क्या है? तो क्यों बार-बार सुनाते हो कि दुख होता है। अरे गलतियां तब करते ही क्यों हो। यदि मुझे उकसाना ही मानव के दुख का समानार्थी है तो मुझे उकसाते ही क्यों हो।” 

‘तो तब तुमसे तुम्हारी राय कैसे लें? चलो तुम ही बताओ’ — अपने अर्धचेतन्य में मैंने भोलेपन से यह पूछ क्या लिया कि वह जाने क्यों खुश हो चला। अर्से बाद मैंने उसकी व्यंग्य मुस्कान देखी। विभत्स तो वह अब भी दिखा पर कहते हैं न कि मुस्कुराहट सदैव सुंदर ही होती है। वह डरावना न दिखा मुझे। 

“चलो बताते हैं।” सहसा यह कहते ही वह औझल हो गया और मैं मन की तरंगो पर उसे पूर्ववत सुनने लगा।

“कोई माजरा नहीं है। पर, माजरा यह है कि उसकी नजदीकी वेनेजुएला के राष्ट्रपति से है और पेरु में चीनियों का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है। मुझे लगा कि वह चुनाव जीत कर सुधर जाएगा पर उसके मन में तो धरम ने खुरापात के बीज डाल रखे थे। उसे पनपने से रोकने या नियंत्रित करने के लिए ही नहीं बल्कि अड़ोस-पड़ोस को बताने के लिए भी मुझे राष्ट्रवादियों को तब उकसाना, -थपथपाना पड़ रहा है। मेरा इशारा है कि धम्मिक साम्यवाद के नाम यदि इन इलाकों में चीनियों ने पैर पसारने की कोशिश की तो मैं इन्हें शांत न रहने दूंगा। बस यही हो रहा है वहां और ऐसा तब तक होता रहेगा जबतक कि इन कमबख्तों को मैं सुधार न दूं। वहां से राष्ट्रवादी मेरे सीधे पात्र नहीं पर उन्होंने अमेरिकी दूतावास के माध्यम से और खुद कैसिलो के रक्षामंत्री के माध्यम से मुझे जो आंतरीक खबर दी थी उससे स्पष्ट था कि यदि मैं अब भी सक्रिय न हुआ होता तो वहां चीनी अपनी सेना तक लेकर पहुंच जाने वाले थे। क्यों? यह किसी ने नहीं पूछा क्योंकि इसकी खबर किसी को थी ही नहीं। अरे कितने मोर्चे खोलने हैं धरम को?” 

“बताओ, पेरु किधर है और अमेरिका किधर? वहां ऐसी धम्मिक हरकत करने के पीछे के राज क्या हो सकते थे? यही कि अमेरिकी ताकत को विभ्रमित किया जा सके। उन्हें जहां लड़ना चाहिए वहां से उन्हें हट कर कहीं और लड़ना चाहिए। पेरु के लोग परंपराओं से शांतिप्रिय रहे हैं। उनका अमेरीकियों से अपने-अपनों जैसा रवैया रहा है। इसमें खलल डालने की धरम की नाहक पहल को देखो। तुम्हें क्या लगता है कि मुझ जैसे उसकी एतिहासिकता की समझ रखने वाला प्राकृतिक ताकत, तुम मानवों के अन्तर्मन की चहलकदमियों के जरिए समझ न सकेगा? यही हास्यास्पद है बडी। हास्यास्पद यह नहीं है कि कैसिलो को सत्ता में आने से रोकने के लिए उसे नजरबंद करने की नौबत आन पड़ी है। सो, सिंपली वेट एण्ड सी। देखते जाओ कि मैं उन्हें मैं कैसे घुमाता हूँ। मैं उन्हें संभाल लूंगा ताकि दक्षिणी अमेरिका में वेनेजुएला की तर्ज पर किसी भी बाह्य ताकत का बोलबाल कभी न जम सके। क्या समझे?”

‘हुम्म, सो डरने की कोई बात नहीं है। वैसे कितने दिनों तक यह सब चलेगा?’ मैंने मन ही मन पूछा पर, सन्नाटा। जाने कब मैं जा सोया था पता नहीं। सुबह उठा हूँ तो बता रहा हूँ। डरने और चिंता करने की कोई बात नहीं है। सावधान रहने की बात जरुर है।

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